खौफनाक परछाई
खौफनाक परछाई
शाम ढल चुकी थी, और मैं अपने ब्लॉग के लिए एक नई कहानी लिखने बैठा था। बाहर हल्की बारिश हो रही थी, जिसकी बूंदें खिड़की से टकराकर एक अजीब-सी धुन पैदा कर रही थीं। अचानक, मेरे लैपटॉप की स्क्रीन पर एक काली परछाई दिखी। मैंने सोचा शायद बाहर किसी पेड़ की होगी, लेकिन जब मैंने ऊपर देखा, तो वहाँ कुछ नहीं था।
मैं फिर से लिखने लगा, लेकिन वह परछाई फिर उभरी, इस बार थोड़ी बड़ी और स्पष्ट। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैंने चारों ओर देखा, कमरे में मैं अकेला था। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। मैंने खुद को समझाया कि यह सिर्फ मेरी कल्पना है, शायद ज़्यादा देर तक स्क्रीन देखने का नतीजा।
मैंने खिड़की बंद कर दी और पर्दा खींच दिया। कमरे में अब सिर्फ लैपटॉप की रोशनी थी। मैं फिर से लिखने बैठा। तभी मुझे अपने पीछे एक ठंडी साँस महसूस हुई। मैंने तेज़ी से पलटा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। सिर्फ़ एक हल्की-सी सरसराहट थी, जैसे कोई मेरे बहुत करीब से गुज़रा हो।
मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। मैंने लैपटॉप बंद करने की सोची, लेकिन तभी स्क्रीन पर वह परछाई फिर से नाचने लगी। इस बार वह किसी इंसान जैसी दिख रही थी, जिसकी आँखें लाल थीं और वह मुझे घूर रही थी। मैं अपनी कुर्सी से उछल पड़ा।
कमरे की लाइट जलाना चाहा, लेकिन स्विच तक पहुँचने से पहले ही कमरे में पूरी तरह अंधेरा छा गया। मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरे बहुत करीब है, और उसकी ठंडी साँसें मेरे कानो में गूँज रही थीं।
"तुम अकेले नहीं हो," एक डरावनी, फुसफुसाती आवाज़ मेरे कान में गूँजी।
मेरी चीख निकल गई, लेकिन आवाज़ गले में ही फंस गई। अगली सुबह जब पड़ोसियों ने दरवाज़ा तोड़ा, तो मैंने खुद को अपने बिस्तर पर बेसुध पाया, और मेरे लैपटॉप की स्क्रीन पर अभी भी वही काली परछाई थी, जो अब मुस्कुरा रही थी।
Comments
Post a Comment