यादों का वो रंगीन पिटारा: हमारा स्कूल


यादों का वो रंगीन पिटारा: हमारा स्कूल

स्कूल का नाम सुनते ही मन में एक अलग ही खुशी दौड़ जाती है। वो सुबह की भाग-दौड़, प्रार्थना सभा की वो जानी-पहचानी धुन, दोस्तों के साथ लंच ब्रेक में पकड़ी हुई बातें और टीचर्स की डांट-फटकार... सब कुछ जैसे कल की ही बात लगती है।

हमारी स्कूल लाइफ किसी रोलरकोस्टर से कम नहीं थी। कभी साइंस के मुश्किल फॉर्मूलों में उलझ जाते, तो कभी मैथ्स के सवालों से जूझते। लेकिन हर मुश्किल में साथ होते थे हमारे दोस्त। राहुल, जो क्लास का सबसे शरारती लड़का था और उसकी हरकतों पर हमें टीचर से डांट भी पड़ती थी, फिर भी उसके बिना मज़ा नहीं आता था। प्रिया, जो पढ़ाई में सबसे आगे थी और हमेशा हमारी मदद के लिए तैयार रहती थी। और समीर, जो अपनी कविताओं से सबका दिल जीत लेता था।

क्लास में जब कोई बोरिंग लेक्चर चल रहा होता था, तो हम इशारों में एक-दूसरे से बातें करते। कभी चुपके से टिफिन शेयर करते, तो कभी होमवर्क न करने पर बहाने गढ़ते। सबसे ज़्यादा मज़ा आता था पी.टी. क्लास में। भागना-दौड़ना, खेलना-कूदना, लगता था मानो सारी दुनिया की आज़ादी मिल गई हो। स्पोर्ट्स डे पर तो स्कूल का माहौल ही बदल जाता था। हर तरफ उत्साह और जोश, अपनी-अपनी टीमों को चीयर करते बच्चे, वो दृश्य आज भी आँखों के सामने घूम जाता है।

एक बार की बात है, हमारे इंग्लिश टीचर ने हमें एक प्रोजेक्ट दिया था। राहुल और मैंने सोचा कि हम इसे आखिरी रात करेंगे, लेकिन जैसा कि आप समझ सकते हैं, हमने ऐसा नहीं किया। अगली सुबह, हम दोनों घबराए हुए थे। तभी प्रिया ने हमारी मदद की। उसने हमें कुछ आइडिया दिए और थोड़ी ही देर में हमने कुछ तो बना ही लिया। भले ही वो परफेक्ट नहीं था, लेकिन उस दिन हमें दोस्ती की असली ताकत का एहसास हुआ था।

फेयरवेल का दिन... वो दिन जब हम सबने एक-दूसरे को गले लगाकर भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं। आँखों में आंसू थे, लेकिन दिल में ढेर सारी यादें। वो बेंच, वो क्लासरूम, वो कॉरिडोर, जहां हमने बचपन की सबसे खूबसूरत यादें गढ़ी थीं।

आज जब भी हम मिलते हैं, तो स्कूल के दिनों की बातें ज़रूर निकलती हैं। वो बेफिक्री, वो मासूमियत, वो दोस्ती... स्कूल सिर्फ एक इमारत नहीं थी, वो एक एहसास था। एक ऐसा एहसास जो हमें हमेशा मुस्कुराने की वजह देता है।


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